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Jan 01, 1970

दान रहस्य

  - लेखक - ज्योतिषाचार्य रोहित तिवारी ;प्दकव ।उमतपबंद ।ेजतवसवहपबंस ।ूंतकद्ध ;प्।थ् स्प्थ्म् ज्प्डम् डम्डठम्त् द्ध बाजपाई वार्ड, गोंदिया (महाराष्ट्र) 441601   दान रहस्य समझने का विषय है, कि दान किसी देने है ? कब दान है ? क्या देने दान मे ? किस विधि से देने है ? ये सब बात ठीक पध्दति से हुई, तो दान फलित हो जाॅएगा। सर्वप्रथम यह सब कथन मै छोटा-सा उदाहरण द्वारा समझने के लिए प्रस्तुत कर रहा हूॅ। मान लीजिए आपको किसी भी ज्योतिष द्वारा गुरू का दान बताया गया है, तो सर्वप्रथम आपको गुरू का दान किसी ब्राम्हण को देना है, वह ऐसा ब्राम्हण होना चाहिए कि, उसे उस दान की आवश्यकता हो या उसका दान वस्तु का उपयोग करे। इसके बाद किस वस्तु का दान करना है, तो गुरू संबधित वस्तु का दान आपको करना है। गुरू का रंग पीला है, तो आप पीला वस्तुओ का दान कर सकते है, जैसे-पीला चंदन, चना दान, पपीता, केला, आम, पीला वस्त्र, पीली मिठाई-जैसे बेसन लडडु। गुरू ग्रह देवगुरू है, इसीलिए धार्मिक ग्रंथो का भी दान आप दे सकते है। ये गुरू दान वस्तु है। इससे यह स्पष्ट हुआ कि, गुरू दान वस्तुओ के संदर्भ मे आपको क्या दान देना है। अब अगला विषय कब दान देना है। इस विषय आप किसी गुरूवार को गुरू के होरा मे दान दे सकते है। यदि सर्वश्रेष्ठ हो तो गुरू का ऋतु हेमंत है। हेंमत ऋतु मे जो गुरूवार पडे उस गुरूवार को गुरू होरा मे दान देना है। इसके बाद का विषय है, कि किस विधि से दान करना है, तो शास्त्र अनुसार आपके सबसे पहले एक मंदिर का चुनाव करना है, दुसरा आपको ब्राम्हण का चुनाव करता है, तीसरा वस्तु का चुनाव करना है, जैसे-एक रामायण, पीला चंदन, चना दान, लडुडु, और पीला वस्त्र नया। इन दान वस्तुओ को लेकर गुरूवार के दिन गुरू होरा मे, मंदिर मे जाकर सर्वप्रथम दर्शन करे, फिर ब्राम्हण से आप कहिये कि आपको दान देना है, उसके लिए वह संकल्प पढ दे। ब्राम्हण द्वारा संकल्प हो जाने के बाद जो वस्तु दान के लिए आप ले गये है, उस पर इच्छाशक्ति के अनुसार कुछ दक्षिणा रखकर और ब्राम्हण को देकर उनका आर्शीवाद प्राप्त करे। इस विधि से दिया हुआ दान, मेरे मतानुसार फलित होगा एंवम गुरूजन द्वारा दान मे कुछ आवश्यक बदलत हो सकते है, जो शायद मुझे ज्ञात ना हो। लेकिन कथननुसार अपना मत प्रस्तुत किया, जो मुझे ज्ञात था। दान किस प्रकार करना है, यह मैने स्पष्ट किया, इसके रहस्यो मे प्रकाश डालना चाहूगा जिस व्यक्ति ने दान किया है, उसने चाहे छोटा सा छोटा दान क्यों ना किया हो ? उसने अपने आय का कुछ हिस्सा दान मे लगाया है, और दान देने से उसकी पूॅंजी शुध्द हो गयी, क्योंकि उसका कुछ हिस्सा दान धर्म लग गया। उस व्यक्ति द्वारा जो दान वस्तु खरीदी गई होगी, उसका महत्व बडा जाता है, तब जब उसका उपयोग हो जाॅंए, जैसे माना रामायण ही दान दिया हो, उसे वह कभी भी पढ़े, तब उस दान मे महत्व आ जायेगी। एक और उदाहरण से स्पष्ट है कि मानो किसी ब्राम्हण को शक्कर दान दिया, मेरा स्वंय देखा हुआ प्रसंग है, कि ब्राम्हण कहता है कि ‘चलो चार दिन के लिए शक्कर हो गई। बस यही दुआ से दान फलित होता है और इसमे सबसे समझने का प्रसंग है, कि आज हम छोटी सी सत्यनारायण व्रत कथा करते है, और उस व्रत पूजा के समाप्ती के बाद अनाज, दाल, सब्जी जो भी उपलब्ध हो, उसे ब्राम्हण को प्रदान करते है, ये पदध्दि से स्पष्ट है, कि आप बडे-से-बडे अनुष्ठान करवा लीजिए, लेकिन उस पूजन के बाद आपने दान नही दिया, तो उस पूजन मे शुभता नही आती है। शास्त्रो मे अनेको प्रसंग मौजूद है, राजा बली और विष्णु भगवान का प्रसंग वामाण अवतार इसका साक्षात प्रमाण है, कि राजा बली ने शुक्रचार्य के लाख मना करने के बावजूद राजा बली ने भगवान विष्णु द्वारा मांगा गया दान जो संकल्पीत था, उसे पूरा किया। भगवान विष्णु भगवान का भी स्नेह राजा बली को प्राप्त हुआ। जब दान मिलने के बाद भगवान विष्णु जी त्रिलोक स्वामी है, वह आर्शीवाद प्रदान करके कृपा कर रहे है, उसी प्रकार ग्रह भी हमे दान पश्चात शुभ आर्शीवाद प्रदान करते है। इतने छोटा उदाहरण द्वारा हम समझ सकते है, कि दान किस प्रकार फलित हो जाता है। आज के समय मे बडी से बडी पूजा हो, उसे बिना दान दिये, पूर्णतया पूर्ण नही मानी जाती। कुछ पूजा अनुष्ठान मे दान अति आवश्यक है, इसे सभी व्यक्ति को समझने की आवश्यकता है। इसके रहस्यो की बहुत बडी गहराई है, जो मैने स्वंय समझी और देखी है। व्यक्ति जब तक जीवित है उसके द्वारा दिया गया दान अनेको संदर्भ हेतु होता है, जैसे - ग्रह अनुकूलता, पूजा-कर्म दान, पितृर दान, इत्यादि लेकिन प्रति व्यक्ति के मुक्तिी का साधन भी दान है, जो कि उसके मरणोपंत दिया जाता है। मुक्ती और पापकर्म की पीडा को कम करने के लिए व्यक्ति परिजनो द्वारा दान इत्यादि दिया जाता है। गौ-दान का विशेष महत्व हमारे ग्रंथ मे भी मिलता है। पुराण अनुसार जब एक जीवआत्मा नरक या स्वर्ग की यात्रा करते समय उस बीच मे उसके सामने वाद की नदी आती है, तब यदि उस व्यक्ति ने अपने जीवनकाल में गौ-दान, किया है, तो वह उस क्षण गौ प्रकट होकर उसे अपनी पूॅछ के सहारे उस नदी को पार करवा देती है। या उसके मरणोपंत उसके परिजनो ने गौ-दान का संकल्प उसके नाम से करवाॅया है, तो तब भी उसका साथ गौ-माता उस मे वाद की नदी को पार करने मे देती है। यदि जीवनकाल में उसने और उसके परिजनों द्वारा गौ-दान का संकल्प नही दिया गया है, तो वह आत्मा उस नदी को तडप-तडप कर पार करती है। कहने का तात्पर्य यह है, कि पुराण द्वारा लिखित वर्णन अनुसार जिसने कभी गौ-दान होने से आत्मपीडा से बेचने का साधन नही देखा, और उसे मानकर दान कर रहा है। यही दान की महिमा और रहस्य है। एक व्यक्ति का तेरह दिनो का पिण्ड कर्म हो जाने के बाद गंगा पूजन करके जो पुरोहित ने पिण्ड कर्म करवाया है, उसे दान स्वरूप अनेको वस्तु, आभूषण, अनाज, बर्तन, छात्र, चप्पल यानि गृहस्थी की पूरी वस्तु का दान ईच्छानुसार संकल्प करके दिया जाता है, हम उसे ‘शयादान’ कहते है। ये दान देने का सिर्फ उद्देश्य यही होता है, कि आत्मपीडा को कम किया जाॅए और उसे शांति प्रदान हो। धरती लोक से दान फलित होकर स्वर्ग, नरक, पितृर और यमलोक तक पहुचता है, ग्रहो का दान फलित होकर सौरमण्डलो मे अवश्य पहुचाता है, ये मेरा दाॅवा है। उसके बाद भी ‘गया’ तीर्थस्थलो मे पितृरो के लिए दान किया जाता है, पितृर मुक्ति के लिए दान दिया जाता है। वह दान से पितृर खुश होकर हमे आर्शिवाद देते है। ‘दान’ की महिमा स्वंय कोईभी मनुष्य लिखित रूप मे बता नही सकता। इसका जितना वर्णन किया जाॅए उतना कम है। दान अनेक प्रकार से अनेको पूजा मे व्रत मे किए जाते है, जो कि वेद, पुराण मे इसका व्याखान मौजूद है।   ज्योतिषाचार्य रोहित तिवारी ;प्दकव ।उमतपबंद ।ेजतवसवहपबंस ।ूंतकद्ध ;प्।थ् स्प्थ्म् ज्प्डम् डम्डठम्त्द्ध  

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